बैंडिट क्वीन से सांसद बनने तक के फूलन देवी के सफर में नाग पंचमी की खास भूमिका है। इस रहस्य से आज पर्दा खुल रहा है। आज नागपंचमी है । इस त्योहार का खास हस्तक्षेप   फूलन के जीवन में रहा है। फूलन देवी नागपंचमी के दिन ही बीहड़ों में हथियार लेकर कूदी थीं....

 

80 के दशक में पुलिस के सामने सरेंडर के दौरान दस्यु सुंदरी फूलन देवी अपने गिरोह के साथ

Dr. Rakesh Dwivedi

Uttar Pradesh के जालौन जिले की कालपी तहसील के तहत एक गांव है शेखपुर गुढ़ा। यमुना नदी किनारे बसे यह गांव में निषाद जाति बाहुल्य है। उस दौर में यह  क्षेत्र शिक्षा, चिकित्सा , आवागमन और कानून व्यवस्था की मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा था, वहीं फूलन देवी के परिवार के सामने एक अलग किस्म की समस्या थी और वह थी पारिवारिक विश्वास की। फूलन का संघर्ष सबसे पहले खुद के खानदान से Start हुआ था। जमीन के विवाद में वह बीहड़ों तक पहुंच गई।

आरोप है कि खानदानी विवाद के चलते फूलन देवी के ताऊ के लड़के मइयादीन ने अपने घर डकैती डलवाकर उसमें फूलन को नामजद कराया था। यह तारीख थी 26 दिसंबर 1978, फूलन को उरई जेल में रहना पड़ा। आम चर्चा है कि फूलन देवी को अपहरण कर ले जाया गया था। जबकि इसमें सत्ययता नहीं मानी गई। फूलन के लिए विक्रम मल्लाह कोई अनजान नहीं था। वह मइयादीन का ममेरा भाई था। उसका गांव  में आना- जाना था। जेल जाने का बदला फूलन देवी हर कीमत पर लेना चाहती थी।

29 जुलाई 1979 रविवार को वह घर छोड़कर बीहड़ चली गई। उस दिन नाग पंचमी थी। इसके बाद फूलन की एक नई कहानी Start हुई। बेहमई कांड से सांसद बनने के उनके किस्से दर किस्से चर्चा में रहे। 25 जुलाई को सांसद रहते हुए नई दिल्ली में जब उनकी हत्या हुई उस दिन भी नाग पंचमी ही थी। गोली से Start हुई कहानी गोली से ही खत्म हुई।

 


जमीन का क्या है विवाद....???

शेखपुर गुढ़ा में इस परिवार के पास 60 बीघा जमीन थी। जिस पर अब मालिकाना हक मइयादीन के पास है। फूलन से विवाद का असली कारण यही बना था। यह परिवार मनफूल निषाद से शुरू हुआ। मनफूल के दो बेटे थे- किशोर निषाद और गुमान निषाद। अब किशोर निषाद के तीन लड़के हुए बिहारी निषाद( मइयादीन के पिता), देवीदीन निषाद ( फूलन देवी के पिता) और रामदीन निषाद। जब कि गुमान के दो पुत्र थे, गुरुदयाल और भवानीदीन।

जब पीढ़ियां बदली तो भूमि का वारिसाना हक भी बदलना Start हुआ। उक्त जमीन सर्वप्रथम किशोर निषाद के आधिपत्य में रही थी। उनके निधन के बाद उनके बड़े बेटे बिहारी निषाद के नाम आ गई। बिहारी परिवार में सबसे बड़े थे लिहाजा सरकारी कागजों में उनके नाम जमीन दर्ज हो गई। अब बिहारी, देवीदीन और रामदीन में से कोई जीवित नहीं है। बिहारी के पुत्र मइयादीन , रामदीन के शिवनारायण सहित फूलन व अन्य बेटियां तथा रामदीन के कोई सन्तान नहीं थी। इसलिए पारिवारिक जमीन  का विवाद मइयादीन और फूलन देवी के परिवार के बीच शुरू हुआ। इसी की परिणति रही कि फूलनदेवी को बंदूक उठानी पड़ी।

 


 

मइयादीन का जब जमीन पर कब्जा हुआ तो मुकदमा दर्ज कराया गया। यह मुकदमा  इंद्रजीत और देवीदीन की ओर से इस आशय के साथ लिखाया गया कि पैतृक भूमि पर उन्हें न्याय दिलाया जाए। मुकदमेबाजी के बाद गांव में एक पंचायत हुई थी। पंचायत में शामिल पंचों ने परिवार के बीच रजामंदी कराई । उस वक्त परिवार वाले राजी होकर अलग- अलग हिस्सों में जमीन जोतने लगे। डकैत बनने के बाद फूलन ने उक्त जमीन मइयादीन से खींच ली थी। लेकिन उनकी हत्या के बाद फिर से मइयादीन का कब्जा हो गया। शेखपुर मौजा में जो साढ़े पांच बीघा जमीन है वह फूलन के भाई शिवनारायण के नाम दर्ज है। यह जमीन मंगरौल मौजे से अलग है। नदी किनारे की यह जमीन कम उपजाऊ और उबड़-खाबड़ है। 

फूलन देवी के भाई शिव नारायण

 

60 बीघा जमीन पर आधा मालिकाना हक इंद्रजीत मांगा था। पंचायत की रजामंदी के आधार पर जमीन जोती जाने लगी। वहीं बाकी बची 30 बीघा जमीन पर फूलनदेवी ने अपना हिस्सा मांगा, जिसे बिहारी और मइयादीन ने नहीं देना चाहा था। फूलन का मइयादीन से विवाद का मुख्य कारण यह जमीन ही थी।

 

फूलन को खटकती रही 15 बीघा जमीन

साढ़े पांच बीघा जमीन शेखपुर गुढ़ा मौजे में भले ही शिवनारायण ( फूलन के भाई) के नाम पर थी पर फूलनदेवी और उसकी मां मुला देवी की आंखों में मंगरौल मौजे की 15 बीघा खेती का हक खटकता रहा। अपने हिस्से की जमीन को लेकर मुलादेवी अक्सर मुद्दा उठाती रही पर उसे यह नहीं पता कि सारी जमीन पर अभी तक मालिकाना हक मइयादीन के नाम पर है।

 

 

 

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